क्या पुलिस कराएगी आफताब का नार्को टेस्ट: इसमें जरा सी चूक से आरोपी चला जाता है कोमा में, या हो जाती है मौत – shraddha murder case narco test may kill accused aftab poonawalla will delhi police go for it wait and watch – News18 हिंदी


हाइलाइट्स

दिल्ली पुलिस श्रद्धा वॉलकर की हत्या के आरोपी का कराएगी नार्को टेस्ट
संवेदनशील होता है यह टेस्ट, इसमें कुछ भी हो सकता है आरोपी को
नार्को टेस्ट की विश्वनीयता पर सवाल, सौ फीसदी सही नहीं होता परीक्षण

नई दिल्ली. पूरे देश को हिला देने वाले ‘श्रद्धा मर्डर केस’ की गहराई और सच्चाई जानने के लिए दिल्ली पुलिस हत्या के आरोपी आफताब पूनावाला का नार्को टेस्ट कराना चाहती है. पुलिस ने इस टेस्ट की मंजूरी के लिए कोर्ट में आवेदन दिया है. दरअसल, नार्को टेस्ट पुलिस के लिए है तो बड़ा हथियार, लेकिन इसके इस्तेमाल में खतरा भी बहुत बड़ा होता है. इस टेस्ट में दी जाने वाली दवा में अगर जरा भी गड़बड़ हुई तो आरोपी शख्स कोमा में जा सकता है, यहां तक कि उसकी मौत भी हो सकती है.

गौरतलब है कि नार्को टेस्ट के जरिये पुलिस या जांच एजेंसी किसी आरोपी का झूठ पकड़ती है. तकनीक के इस्तेमाल से शख्स सब सच-सच बोलने लगता है, या कहानियां नहीं बना पाता. इस तकनी में कार्डियो कफ का इस्तेमाल होता है. इसे संवेदनशील इलेक्ट्रोड्स भी कहा जाता है. इसे आरोपी के शरीर पर कई जगह लगाया जाता है. इस तकनीक से उसका ब्लड प्रेशर, सांस, नब्ज की गति, खून के प्रवाह और पसीने की ग्रंथियों में होने वाले बदलाव का पता लगाया जाता है. अगर आरोपी जरा भी झूठ बोलता है तो उसके शरीर में होने वाली किसी भी तरह की हलचल टेस्ट करने वाले को संकेत दे देती है कि वह सच बोल रहा है, झूठ बोल रहा है या उसे इस सवाल का जवाब पता ही नहीं है.

सोडियम पेंटोथैल ड्रग का होता है इस्तेमाल
जानकारी के मुताबिक, नार्को टेस्ट में आरोपी को सोडियम पेंटोथैल ड्रग का इंजेक्शन दिया जाता है. इससे वह सम्मोहन ​जैसी स्थिति में पहुंच जाता है और उसकी कल्पनाशीलता रुक जाती है. इस स्थिति में चूंकि वह कल्पना नहीं कर पाता इसलिए माना जाता है कि वह सच बोल रहा है. इस ड्रग को ‘ट्रुथ सीरम’ भी कहा जाता है. यह सर्जरी के कुछ मामलों में एनिस्थीसिया के तौर पर भी इस्तेमाल होती है.

यह है इस टेस्ट का इतिहास
नार्को टेस्ट का इतिहास 19वीं सदी से जुड़ा है. 19वीं सदी में एक इतालवी क्रिमिनोलॉजिस्ट सीजार लोम्बोर्सो ने पूछताछ के दौरान एक अपराधी के ब्लड प्रेशर में आने वाले अंतर को जांचने वाली मशीन बनाई थी. इसके बाद इस तकनीक पर लगातार काम होता रहा. 1914 में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक विलियम मार्स्ट्रन ने ऐसी ही मशीन बनाई थी. यह मशीन पिछली मशीन के मुकाबले एडवांस थी. उसके बाद कैलिफोर्निया पुलिस के जॉन लार्सन ने 1921 में मशीन बनाई.

टेस्ट कराने में हैं कानूनी अड़चन
बता दें, नार्को टेस्ट को लेकर विवाद भी हैं. इस टेस्ट को लेकर लेकर जो नतीजे मिलते हैं, जरूरी नहीं कि वह सौ फीसदी सही ही हो. इसलिए इनकी विश्वसनीयता पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जाता. भारत में इस टेस्ट को किसी गंभीर केस को सुलझाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसके लिए बाकायदा कानूनी मंजूरी लेनी पड़ती है. इस टेस्ट के लिए कोर्ट की अनुमति जरूरी है. बिना कोर्ट की अनुमति कोई भी इस प्रकार का टेस्ट नहीं कर सकता है. इसके साथ साथ इस टेस्ट के लिए उस व्यक्ति की भी इजाजत लेनी होती है जिस व्यक्ति का टेस्ट किया जाना है.

Tags: National News, Shraddha murder case



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